महर्षि महामानस के प्रज्ञा बाणी

 



आप मानव हैं क्योंकि आपके पास चेतन मन है। लेकिन आपका सचेतन मन (Conscious Mind) अभी तक पर्याप्त विकसित नहीं हुआ है। आपको एक विकसित मनुष्य बनने के लिए इस सचेतन मन को विकसित करना होगा। और यह आपका प्राथमिक धर्म है। 

~महर्षि महामानस


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महर्षि महामानस के (तर्क संगत) उचित आध्यात्मिक विज्ञान से~

कहा जाता है कि ईश्वर जीव का परम हितैषी है, जीव का परम मित्र है! लेकिन यह वास्तविक सच्चाई नहीं है।

यदि ईश्वर जीवों से प्रेम करते, तो वह एक जीव को दूसरे जीव के लिए खाद्य नहीं बनाते थे। वास्तव में, जीव~ शिशु ईश्वर के एक खेल-घर की गुड़िया से ज्यादा कुछ नहीं है!


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महर्षि महामानस के तर्कसंगत आध्यात्मिक विज्ञान के आधार पर ईश्वर के स्वरूप का अनावरण!

ईश्वर के असली रूप क्या है?

इस महाविश्व का अस्तित्व ही ईश्वर है। ईश्वर के सिवाय यहां कुछ भी मौजूद नहीं है। जीव या प्राणी और पौधों सहित इस दुनिया में सब कुछ ईश्वर का हिस्सा है।

इस महाविश्व या व्रह्माण्ड रूप ईश्वर के शरीर में एक मन है, वह है विश्व-मन या ईश्वर-मन। जिसे हम विश्व-आत्मा कहते हैं।

हमारे शरीर और मन की तरह, ब्रह्मांडीय ईश्वर में दो अलग-अलग प्रकार की ऊर्जाएँ हैं। एक ऐच्छिक ऊर्जा है, और दूसरी स्वयंक्रिय अनैच्छिक ऊर्जा है।

ईश्वर को अलग से देखना या पाना संभव नहीं है। किसी का विक्षिप्त दिमाग एक काल्पनिक ईश्वर का सामना कर सकता है, जो वास्तव में उसके दिमाग द्वारा बनाया गया मानसिक प्रक्षेपण है।

इसके अलावा, बुरी आत्माएं अक्सर देवताओं या ईश्वर के रूप में अभिनय करते हुए अंधभक्त को धोखा देती हैं। कुछ मामलों में, दुष्ट धोखेबाज जादू की चाल के माध्यम से अंधविश्वासी को धोखा देता है।

यहां एक बात अवश्य कहनी चाहिए, भगवान और ईश्वर एक चीज नहीं है। और देवता और भगवान एक चीज नहीं हैं। मेरे पुस्तक में इस बारे में विस्तृत चर्चा की गई है।

https://mahadharma.wixsite.com/book


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आत्म-विकास अर्थात मन का विकास ही मानव जीवन कि मूल लक्ष्य है। हमारा अंतिम लक्ष्य ईश्वर को प्राप्त करना नहीं, बल्कि ईश्वरत्व प्राप्त करना (ईश्वर होना) है।

हम आज इतना दुख~ इतना परेशानी में हैं क्योंकि हम भटक गए हैं~ हम गलत रास्ते पर जा रहे हैं।

शेर का शावक शेर ही होगा! क्या ऐसा नहीं है ?! ईश्वर का सन्तान एक दिन ईश्वर ही बनेगा, यही व्यवस्था है।

~महर्षि महामानस


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आत्मा वास्तव मे क्या है!

समग्र मन ही आत्मा है। मन के अलावा आत्मा नामक कोई दुसरी चीज नहीं है। अहंकार बोध से भरा और सोचने की शक्ति पूर्ण चेतन अस्तित्व वास्तव में मन है।

चाहे वह पार्थिव शरीर के साथ मन हो और अपार्थिव शरीर के साथ मन हो, चाहे वह जीवित प्राणी का मन हो या ईश्वर का मन हो, वास्तव में वह मन ही है। ~महर्षि महामानस


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शांति~ शांति कहने से शांति नहीं आएगी। अशांति का कारण अच्छी तरह से समझा जाना चाहिए और सभी को इसे समझना चाहिए। शांति तभी आएगी जब हम अशांति को दूर कर सकेंगे। ज्ञान और चेतना की कमी और शारीरिक और मानसिक बीमारी अशांति का मुख्य कारण हैं।

~महर्षि महामानस


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मुक्त-मना कौन है?


सभी प्रभावों से मुक्त, पूरी तरह से स्वाधीन स्वतंत्र

 स्वस्थ और जाग्रत मन ही वास्तविक मुक्त मन है। लेकिन वास्तव में इसे मिलना लगभग असंभव है, इसलिए अनेकांश मैं प्रभाव से मुक्त, एक स्वाधीन स्वतंत्र और स्वस्थ मनको को मुक्त-मन कहते हैं। इस कदर जिस व्यक्ति के पास मुक्त स्वतंत्र मन होता है, उसे मुक्त-मना कहा जा सकता है।

~महर्षि महामानस


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कम जागरूक~ स्वल्प चेतन व्यक्ति को आप कैसे पहचाने!

वे लोग केवल अपने रिश्तेदारों, परिवार के सदस्यों, अपने धर्म, समूह, जाति, पार्टी और उस धर्म, समूह, जाति, पार्टि और अपने परिवार के सदस्यों, अपने लोगों के प्रति बहुत ही आसक्त होती हैं। अंधे समर्थक, एक कट्टर अन्धभक्त, एक अंध विश्वासी होते है। 

इसके बाहर के लोगों के लिए (जब तक विशेष स्वार्थ नहीं) वे विद्वेष भावनात्मक या शत्रुतापूर्ण होते हैं। वे अपने लोगों के दोषी या अन्यायपूर्ण व्यवहार को अन्यायपूर्ण नहीं मानते, बल्कि सहि मानते हैं। वे अपने दोष नहीं देखते हैं, वे केवल दूसरों के दोष देखते हैं।  ~महर्षि महामानस


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एक पूर्ण या पर्याप्त रूप से विकसित मनुष्य किसे कहा जाएगा?

जो मनुष्य अपने दो मन (चेतन और अवचेतन मन) के प्रति जागरूक होता है, जिसका अवचेतन मन पर नियंत्रण होता है, वह एक पर्याप्त विकसित मनुष्य है।

इसके अलावा, बाकी लोग उन-मनुष्य या असम्पूर्ण मनुष्य हैं।

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